माओवादी क्रांति नहीं, विघटन चाहते हैं
छत्तीसगढ़ ( बीजापुर-टेकुलगुडम ) ओम प्रकाश सिंह । छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के थाना तर्रेम क्षेत्र में घात लगाकर किए गए माओवादी हमले में 22 सुरक्षाकर्मियों की शहादत के संदर्भ में सोचना जरूरी हो जाता हैं कि आखिर माओवादियों के राजनीतिक उद्देश्य क्या हैं ❓
यह भी कि अतीत के उग्र वामपंथी आंदोलन से यह कितना भिन्न हैं ❓
छत्तीसगढ़ के दुर्गम इलाकों में फैले माओवादियों की अब तक की क्या उपलब्धियां हैं ❓
क्या सरकार नहीं चाहती कि नक्सली समस्या का समाधान हो ❓
आज पहाड़ी-आदिवासी क्षेत्रों में माओवादियों के एजेण्डे पर किसान नहीं हैं। वहां खेती का भौगोलिक और आर्थिक स्वरुप भी सर्वथा भिन्न हैं।
माओवादी आदिवासी इलाकों में सड़कें नहीं बनने देते।शिक्षा का प्रसार नहीं होने देते। आधुनिक सभ्यता का विस्तार रोकने के लिए जो भी संभव हैं, वे सभी काम करते हैं।
उनका वर्ग शत्रु खाकी पहने किसान-मजदूर का बेटा हैं। राज्य सत्ता को सफल चुनौती देने वाले सुप्रशिक्षित हथियारबंद दस्ते खड़े करने के लिए जरूरी वित्तीय स्त्रोत क्या हैं❓
गरीब आदिवासियों के पास तो पूरे साल दो जून की रोटी या पसिया का भी इंतजाम नहीं होता।
माओवादियों का कोई स्पष्ट एजेण्डा होता, तो अब तक सार्थक बातचीत हो चुकी होती और उसके नतीजे सामने होते। यह तय है कि अनिश्चित काल तक भारत उनके खिलाफ सैनिक कार्रवाई जारी रख सकता हैं, पर वे नहीं। लेकिन कड़वा सच यह हैं कि अभी तक कारगर रणनीति नहीं बन पाई हैं।
टेकुलगुडम की पहाड़ी पर माओवादियों की जिस सड़ासीनुमा व्यूहरचना में सुरक्षाबलों को भारी नुकसान पहुंचा। जब-जब माओवादियों ने घात लगाकर सुरक्षाबलों पर हमला किये, सुरक्षाबलों को भारी नुकसान हुआ हैं। सुरक्षाबलों के आधुनिक हथियार लूटकर अपने साथ ले जाने में कामयाबी रहे, इससे माओवादियों की ताकत दुगनी होता गया हैं। और सुरक्षा बलों पर भारी पड़ते दिखे, आज तक पुलिस फोर्स उन हथियारों को बरामद नहीं कर पाई, यहीं कारण है कि माओवादियों की ताकत दुगनी हो गई और नये लड़को की फौज खड़ी कर सुरक्षाबलों को घात लगाकर हमला करने में कामयाबी हो रहे हैं।
पहाड़ियों और जंगलों में ह्यूमन इंटेलिजेंस की सीमाएं हैं टेक्निकल इंटेलिजेंस के उन्नत उपायों और अतीत की अमल से कामयाबी हासिल की जा सकती हैं।
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