आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेण्डी ने लिखा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस प्रफ़ुल्ल चन्द्र पंत को पत्र

आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेण्डी ने लिखा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस प्रफ़ुल्ल चन्द्र पंत को पत्र

17 मई को दक्षिण बस्तर में हुई गोलीकांड की निष्पक्ष जांच हो--गोपाल राय, प्रदेश प्रभारी आम आदमी पार्टी छत्तीसगढ़ एवं कैबिनेट मंत्री दिल्ली सरकार

सुकमा व बीजापुर जिले के सरहद सिलेगर में ग्रामीणों पर गोलीबारी तीन किसानों की मौत की जांच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की निगरानी में हो--कोमल हुपेण्डी,प्रदेश अध्यक्ष आम आदमी पार्टी छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ ( बस्तर-जगदलपुर ) ओम प्रकाश सिंह । आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेण्डी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश चन्द्र पंत को पत्र लिखा है।



आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी एवं दिल्ली के कैबिनेट मंत्री गोपाल राय ने 17 मई को दक्षिण बस्तर में हुए गोलीकांड की निष्पक्ष जांच की मांग की है।

प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेण्डी ने सिलेगर मामले को आयोग की निगरानी में जांच कराने की मांग की है। दक्षिण बस्तर के सुकमा और बीजापुर जिले के सरहद सिलेगर में सीआरपीएफ कैम्प खोले जाने का तीन दिन से विरोध कर रहे हज़ारों ग्रामीणों की भीड़ पर 17 मई 2021 को पुलिस दुवारा अचानक गोली चलाई गई, आंसू गैस के गोले छोड़े गए, जिसमें तीन स्थानीय ग्रामीण आदिवासियों की मौत हो गई जो पेशे से किसान थे जबकि दो दर्जन से ज्यादा ग्रामीण आदिवासी घायल हो गए है। पुलिस भी मान रही है- मारे गए तीनों आदिवासी, स्थानीय ग्रामीण हैं। ये नक्सली नहीं है।



दक्षिण बस्तर वर्षों से इस समस्या से जूझ रहा है, लगातार वहां के खदानों के कॉर्पोरेट के हाथों में दिया जा रहा है, आदिवासियों की जमीन को उद्योग धंधे लगाने के नाम पर उनसे छीना जा रहा है और फिर जमीनों का आपस में बंदरबांट किया जा रहा है।
कोमल हुपेण्डी ने कहा कि जब इस तरह के सीआरपीएफ कैम्प खुलते हैं तो ग्रामीण इसका विरोध करते हैं। ग्रामीण दक्षिण बस्तर के अंदर नक्सल से भी परेशान हैं। सीआरपीएफ कैम्प खुलते हैं, तो ग्रामीणों को नक्सल के नाम पर परेशान किया जाता है, इसलिए ग्रामीण इस तरह के कैम्प का विरोध करते हैं। सरकार तो खदानों को कॉरपोरेट को देने,आदिवासियों की जमीन को उद्योग लगाने के नाम पर आपस में बंदरबांट करने में लगी है जिससे दक्षिण बस्तर के आदिवासी अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

सरकार को जब भी नए सीआरपीएफ कैम्प लगाना होता है तो स्थानीय जनप्रतिनिधयों, पुलिस और ग्रामीणों के बीच संवाद होना चाहिए, जिससे एक विश्वास का माहौल बन सके, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है, जिससे आम आदिवासी प्रताड़ित हो रहे हैं और उनको अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ रहा है।

उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष से कहा है,कि इस देश में जब एक आम आदिवासी जो बेवजह पुलिस की गोलीबारी में मारा जाता है, वो नक्सली नहीं है, वो चाहता है- आप इसकी अपनी निगरानी में एक उच्चस्तरीय जांच करवाएं ताकि सच बाहर आये, उसके हिसाब से आप राज्य सरकार को निर्देशित करें।उनको आगे क्या करना है, जिससे दक्षिण बस्तर के आदिवासियों के इन समस्याओं का समाधान हो, नहीं तो इस केस में भी लीपापोती कर दी जाएगी और आम आदिवासी न्याय से महरूम हो जायेगा।

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