राजपत्र में प्रकाशित नियमों की धज्जियां उड़ा रहे स्वस्थ्य विभाग के अधिकारी

राजपत्र में प्रकाशित नियमों की धज्जियां उड़ा रहे स्वस्थ्य विभाग के अधिकारी

तहसीलदार द्वारा छापामार कार्रवाई के बाद: जिला प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं ?

" स्वास्थ्य विभाग की इम मामले में उदासी रवैया समझ से परे है अनुज्ञापन अधिनियम : २०१० के नियम विरुद्ध आदेश जारी किया गया है

इस नियम में सीधा क्लीन सील किया जाता है और २०,०००/- ₹ जुर्माना ऐसा क्यों नहीं ?

छत्तीसगढ़ ( बस्तर-जगदलपुर ) ओम प्रकाश सिंह ।  " डॉ.अक्षय पाराशर " के क्लीनिक में कलेक्टर के दिशा निर्देश अनुसार तहसीलदार मधुकर सिरमोर द्वारा गठित टीम ने छापा-मार कार्रवाई की गई थी जिस पर आरटीआई द्वारा प्राप्त जानकारी से तहसीलदार द्वारा की गई कार्रवाई के दौरान जांच में दोषी पाया गया है।




जगदलपुर तहसीलदार द्वारा आरटीआई से प्राप्त जानकारी में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि जांच के दौरान " नेत्र क्लिनिक विजन सेंटर " में मरीजों की जांच करते हुए " डॉक्टर अक्षय डी. पाराशर पाए गए डॉ. अक्षय पाराशर वर्तमान में महारानी हॉस्पिटल में नेत्र विशेषज्ञ के रूप में पदस्थ है ", जांच के दौरान मौजूद मरीजों का इलाज करते हुये पाये गये, जिस पर तहसीलदार ने डॉ अक्षय पाराशर से क्लीनिक एक्ट २०१० के अनुसार मान्यता संबंधित कोई रजिस्ट्रेशन या प्रमाण पत्र के संबंध में जानकारी मांगी जिस पर तहसीलदार के समक्ष कोई भी प्रमाणित कागजात प्रस्तुत नहीं किया गया। 




जांच के संबंध में तहसीलदार द्वारा कलेक्टर बस्तर को प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए लिखा गया है कि " महारानी हॉस्पिटल में पदस्थ नेत्र विशेषज्ञ डॉक्टर अक्षय पाराशर के द्वारा अन्य निजी क्लीनिक विजन सेंटर कार्य करने के संबंध में उनकी नियुक्ति एजेंसी महारानी हॉस्पिटल द्वारा आवश्यक करवाई किया जाना उचित होगा ", इस जांच प्रतिवेदन से स्पष्ट होता है डॉक्टर अक्षय पाराशर द्वारा "बिना पंजीयन के क्लीनिक संचालन किया जा रहा है " इससे पूर्व में भी डॉ अक्षय पाराशर के द्वारा गैर कानूनी तरीके से टेंडर प्रक्रिया में सम्मिलित होकर शासकीय टेंडर प्राप्त किया गया, जिस कारण इन्हे उच्च अधिकारी द्वारा स्पष्टीकरण दिया गया, इस की भी आज दिनांक तक जांच लंबित हैं। शासन - प्रशासन को धोखे में रखकर इस तरह का कृत्य किया जा रहा हैं। जोकि सिविल सेवा आचरण नियम " १९६५ " के प्रतिकुल हैं।



" नियुक्ति शर्तों के खंडिक ८ उल्लंघन है। संविदा के अधीननियुक्त नेत्र विशेषज्ञ निजी प्रैक्टिस नहीं कर सकेगा, यदि कोई उम्मीदवार चयन उपरांत निजी संस्था में कार्य करते पाये जाते हैं, तो उनकी सेवा तत्काल समाप्त की जावेगी। "

" तहसीलदार के जांच प्रतिवेदन पत्र क्रमांक/ वाचक/ तह/ २०२१ जगदलपुर दिनांक २७-०५-२०२१ के तहत डॉ अक्षय पाराशर दोषी पाए गये हैं। "

"तहसीलदार जगदलपुर के प्रस्तुत जांच प्रतिवेदन स्वास्थ्य विभाग के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के संज्ञान में आने के बाद तहसीलदार के प्रतिवेदन की धज्जियां उड़ाया जा रहा हैं। "

छत्तीसगढ़ राज्य उपचर्यागृह तथा रोगोउपचार संबंधी स्थापनाएं  अनुज्ञापन अधिनियम-२०१० के तहत्  " व्यक्ति बिना ( वैध ) लाइसेंस के कोई क्लिनिकल स्थापना जो चला रहा हैं तो २०,०००/- रूपये ( बीस हजार रुपये ) के जुर्माने का दण्ड दिया जाएगा।"

कलेक्टर बस्तर संज्ञान में है कि नेत्र चिकित्सक नियुक्ति अवधि में विभागीय जांच से लेकर धोखाधड़ी और शासन से दोहरा लाभ लेकर जेके ऑप्टिकल पार्टनरशिप के साथ-साथ विभागीय जांच भी लंबित है इस प्रकार गंभीर आरोप के बावजूद भी नेत्र चिकित्सक पर कार्यवाही क्यों नहीं ?



यहां तक की नेत्र विशेषज्ञ की नियुक्ति के लिए नियम विरुद्ध आदेश क्रमांक ५४९ दिनांक १९/०८/२१ जारी कर किया जा चुका है यहां तक की राजपत्र में प्रकाशित अनु ज्ञापन अधिनियम २०१० के विरुद्ध भी  आदेश जारी कर बचाने का प्रयास किया गया है संज्ञान में पाठ को लाना जाऊंगा की अनुज्ञापन अधिनियम २०१० को बदलने का अधिकार किसी भी अधिकारी को नहीं है और उस पर टिप्पणी करना अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है ऐसे अधिकारी पर कार्रवाई करना चाहिए जिला प्रशासन मौन क्यों ?

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