महिला पटवारी द्वारा राज्यपाल को आवेदन करके इस मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना से मुक्ति देने हेतु इच्छामृत्यु की मांग की
छत्तीसगढ़ ( दन्तेवाड़ा ) ओम प्रकाश सिंह । विगत कई दिनों से दंतेवाड़ा जिले के एक महिला पटवारी श्रीमती लल्ली मेश्राम को शासन द्वारा निलंबित करने और उसके विरोध में महिला पटवारी द्वारा राज्यपाल को आवेदन करके इस मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना से मुक्ति देने हेतु इच्छामृत्यु की मांग की हुई है। शासन का कहना है की उक्त पटवारी को नियमानुसार निलंबित किया गया है तथा उनके खिलाफ कार्य न करने की बहुत सी शिकायत प्राप्त हुई थी। महिला पटवारी द्वारा शासन के दिए गए निर्देशों का भी पालन नहीं किया गया है एवं अनर्गल आरोप लगाते हुए शासन की छवि धूमिल करने की कोशिश की गई है।
महिला पटवारी का कहना है की दिनांक 09/02/2021 को उन्हें कुम्हाररास से मेंडोली में और 30/07/2021 को मेंडोली से दंतेवाड़ा स्थानांतरित किया गया इसके पश्चात पुनः दिनांक 25/11/2021 को दंतेवाड़ा से दूसरे तहसील गीदम कार्यालय में बिना कोई हल्का नंबर देते हुए गीदम तहसील कार्यालय में संलग्न कर दिया गया यह कहते हुए की शासन द्वारा 2 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत पटवारी का स्थानांतरण किया जाना है जबकि मौजूदा परिस्थिति में नियमानुसार देखा जाए तो महिला पटवारी श्रीमती लल्ली मेश्राम को कुम्हाररास में कार्य करते हुए एक वर्ष से भी कम समय हुए है। फिर उनका स्थानांतरण क्यों किया गया। क्यों केवल एक पटवारी को दूसरे तहसील में भेज दिया गया। क्यों किसी दूसरे पटवारी को दो दो हल्का नंबर देते हुए मुझे ही कोई हल्का नंबर नहीं दिया गया। क्या यह सब एक अकेली महिला को परेशान करने के लिए किया गया।
स्थानीय प्रशासन यह भी कहती है की माननीय उच्च न्यायालय ने भी उनके याचिका को खारिज कर दिया है। जबकि पूरी बात यह नहीं बताई गई की माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका की सुनवाई पर निर्णय करते हुए रिट याचिका पूर्ण होने की बात कही है। किंतु पूरी बात यह नहीं बताई जाती की माननीय उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के प्रशासन के समक्ष पुनः आवेदन करने के अधिकार को सुरक्षित रखा है। इसी अधिकार के तहत पीड़िता ने प्रशासन को पुनः आवेदन करके राहत देने की मांग की है। पीड़िता पटवारी ने शासन के दिए गए सभी आवेदन का नियत समय में लिखित जवाब दिया है।
महिला पटवारी द्वारा निलंबन के मामले में पूछने पर तहसीलदार के द्वारा आज तक गोल मोल ही जवाब दिए गए है। उन्हें कहा गया की गांव वालो द्वारा उनके खिलाफ शिकायत है।
जबकि स्थानांतरण करने के पूर्व महिला पटवारी के खिलाफ किसी भी प्रकार की कोई लिखित शिकायत नहीं थी। इसके विपरित गांव वालों ने खुद ही एसडीएम के समक्ष महिला पटवारी के समर्थन में 40 लोगो ने हस्ताक्षर करते हुए आवेदन दिए है।
तत्पश्चात ही प्रशासन द्वारा कुछ ही गांव वालों के हस्ताक्षर वाले आवेदन का हवाला देकर महिला पटवारी के कार्य न करने की शिकायत की बात कही है।
प्रशासन यह भी कहती रही है की महिला पटवारी द्वारा दस्तावेज नहीं दिए गए और उनके खिलाफ FIR करने की बात लिखित में कही गई।
जबकि पुलिस अमले द्वारा कोई भी FIR नहीं लिखी गई।
इतना ही नहीं तहसीलदार महोदया द्वारा पुलिस बल लेकर दो - दो बार महिला पटवारी के घर में भय का माहौल बनाया गया। उनसे दस्तावेज मांगे गए, वीडियो बनाया गया। महिला पटवारी द्वारा स्वयं ही कहा गया की दस्तावेज टेबल पर रखे है आप ले जा सकते है किंतु तहसीलदार के द्वारा स्वयं ही दस्तावेज नहीं ले जाया गया और उसके कुछ दिनों के बाद " तहसीलदार के द्वारा संध्या के 6 बजे बिना कोई सूचना दिए खुद ही आकर सारे दस्तावेज को ले जाया गया तथा दस्तावेज ले जाने की कोई भी सूची पीड़िता को नहीं दी गई।"
पीड़िता का कहना है कि क्या मैं कोई क्रिमिनल थी❓ जो मुझ पर ऐसा धौंस जमाया गया। मेरे छोटे से बच्चे के सामने ऐसे भयभीत करने वाले कृत्य किए गए जिससे वह मानसिक रूप से उबर नहीं पाया है।
यदि तहसीलदार महोदया बिना पुलिस बल के दस्तावेज ले जा सकते थे तो पुलिस बल का वाकया क्यों किया गया❓
क्या ऐसा किया जाना नैतिक रूप से सही था❓
भारत के संविधान और माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा प्रदत्त अधिकारी का उपयोग करते हुए मेरे द्वारा न्याय की मांग की जा रही है। यदि मैं इतनी ही गलत होती तो मेरे जैसे छोटे शासकीय सेवक का इस तरह से प्रशासन के विरुद्ध लड़ने की हिम्मत जुटा पाना आसान नहीं होता। माननीय मुख्य मंत्री सर सबकी सुनते है, उनका राज्य व्यापी दौरा है। मेरे द्वारा उनके सम्मुख भी न्याय की मांग की जावेगी। यकीन है उनके द्वारा इंसाफ किया जाएगा और दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही की जायेगी।
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