सोनोग्राफी (अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी) से भी डेंगू के संकेत मिलना संभव

सोनोग्राफी (अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी) से भी डेंगू के संकेत मिलना संभव



छत्तीसगढ़ ( बस्तर-जगदलपुर ) ओम प्रकाश सिंह । डेंगू की पहचान  सामान्यतः रक्त का नमूना लेकर डेंगू टेस्ट के द्वारा की जाती है। किंतु यह बात काफी कम ही सामने आती है की डेंगू के लक्षण सोनोग्राफी के द्वारा भी पता लगाए जा सकते हैं। जगदलपुर शहर के वाइजैग डायाग्नोस्टिक सोनोग्राफी सेंटर में रेडियोलॉजिस्ट डॉ. मनीष मेश्राम के द्वारा सोनोग्राफी करते हुए पाया गया की एक 27 वर्षीय युवा के पेट में थोड़ी मात्रा में रक्त का थक्का जमा है जबकि मरीज को कोई बाहरी चोट नहीं लगी थी। मरीज़ के पित्ताशय थैली में सूजन थी और पेट में थोड़ी मात्रा में पानी का भी जमाव था। मरीज़ को केवल थोड़ी पेट दर्द की शिकायत थी। शरीर में कही किसी प्रकार के चकतो के निशान भी नहीं थे । फिर भी डॉ मेश्राम ने मरीज को डेंगू टेस्ट करवाने की सलाह दी और डेंगू टेस्ट पॉजिटिव निकला। मरीज़ के प्लेटलेट्स की संख्या में भी काफी कमी आ चुकी थी। सोनोग्राफी के दूसरे दिन खून जांच से पता चला की मरीज की प्लेटलेट की संख्या 36 हजार और अगली जांच में 9 हजार तक ही रह गई थी। प्लेटलेट की सामान्य संख्या 1.5 से 4 लाख तक होनी चाहिए। इस प्रकार सोनोग्राफी द्वारा जल्द लक्षण दिखने और डेंगू टेस्ट पॉजिटिव होने की वजह से जल्द ही मरीज को प्लेटलेट्स द्रव्य दे दिया गया जिससे मरीज को डेंगू से हो सकने वाले होने वाले गंभीर परिणामों से बचा लिया गया एवं मरीज का स्वास्थ्य जल्द ही ठीक हो गया।



द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यह बीमारी एक विश्वव्यापी समस्या हो गयी है। यह 110 देशों में आम है। प्रत्येक वर्ष लगभग 50-100 मिलियन लोग डेंगू बुख़ार से पीड़ित होते हैं। डेंगू एक संक्रमण है जो की डेंगू वायरस से होता है। यह संक्रमण मच्छर की एक प्रजाति मादा एडिस एजिप्टी (Aedes aegypti) के काटने से फैलती है।  यह मानव-निर्मित पानी रखने के पात्रों में अंडे देना पसंद करते हैं एवं यह अधिकतर दिन के समय काटते हैं। डेंगू बुख़ार को "हड्डीतोड़ बुख़ार" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों। डेंगू बुख़ार के कुछ लक्षणों में बुखार; सिरदर्द; त्वचा पर चेचक जैसे लाल चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों का दर्द शामिल हैं। कुछ लोगों में, डेंगू बुख़ार एक या दो ऐसे रूपों में हो सकता है जो जीवन के लिये खतरा हो सकते हैं। पहला, डेंगू रक्तस्रावी बुख़ार है, जिसके कारण रक्त वाहिकाओं (रक्त ले जाने वाली नलिकाएं), में रक्तस्राव या रिसाव होता है तथा रक्त प्लेटलेट्स  (जिनके कारण रक्त जमता है) का स्तर कम होता है। दूसरा डेंगू शॉक सिंड्रोम है, जिससे खतरनाक रूप से निम्न रक्तचाप होता है।

डेंगू वायरस से संक्रमित लगभग 80% लोगों (प्रत्येक 10 लोगों में से 8) में कोई लक्षण नहीं होते हैं या बेहद हल्के लक्षण (जैसे कि मूलभूत बुख़ार) होते हैं। संक्रमित लोगों में से लगभग 5% लोग (प्रत्येक 100 लोगों में से 5) गंभीर रूप से बीमार पड़ते हैं। इन लोगों की एक छोटी संख्या में, बीमारी जीवन के लिये खतरनाक होती है। डेंगू वायरस से पीड़ित होने के 3 से 14 दिनों के बाद किसी व्यक्ति में लक्षण दिखते हैं। लक्षण अक्सर 4 से 7 दिनों के बाद ही दिखते हैं। इस तरह यदि कोई व्यक्ति ऐसे क्षेत्र से लौटता है जहां डेंगू आम है और उसके लौटने के 14 दिन या उसके बाद उसको बुख़ार होता है या अन्य लक्षण दिखते हैं तो शायद उसको डेंगू नहीं है।

डेंगू से पीड़ित अधिकतर लोग ठीक हो जाते हैं और उनको बाद में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती है। डेंगू से संक्रमित लोगों में 1 से 5% (प्रत्येक 100 में से 1 से 5) की उपचार के अभाव में मृत्यु हो जाती है।अच्छे उपचार के बावजूद 1% से कम लोगों की मृत्यु हो जाती है। हलांकि, गंभीर डेंगू से पीड़ित लोगों में से 26% (प्रत्येक 100 में से 26) की मृत्यु हो जाती है। अतः समय रहते डेंगू की पहचान करना आवश्यक हो जाती है ताकि इसके द्वारा होने वाले गंभीर स्वास्थ्य हानियों से बचा जा सके।

डॉ मेश्राम बताते हैं की  प्रायः यह जाना जाता है की मच्छरों से उत्पन्न बीमारी गंदगी और निम्न सोशियो इकोनॉमिक जीवनशैलियो में पाई जाती है किंतु डेंगू के संबंध में यह पूरी तरह सत्य नही कहा जा सकता। साफ सुथरी जगह अथवा उच्च सोशियो इकोनॉमिक जीवनशैली के लोगो मे भी डेंगू देखने को मिलता है क्योंकि डेंगू मच्छर साफ पानी में पनपता है। फिलहाल लोगों को डेंगू वायरस से बचाने के लिये कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। डेंगू बुख़ार से लोगों को बचाने के लिये कुछ उपाय हैं, जो किये जाने चाहिये। मच्छरदानी के उपयोग से लोग अपने को मच्छरों से बचा सकते हैं। वैज्ञानिक मच्छरों के पनपने की जगहों को छोटा तथा कम करने को कहते हैं। समाज के सभी हिस्सों को एक साथ काम करना चाहिये। जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र (जैसे सरकार), निजी क्षेत्र (जैसे व्यवसाय तथा निगम) और स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र शामिल हैं। ठहरे हुए पानी को समाप्त करना चाहिये क्योंकि यह मच्छरों को आकर्षित करता है और इसलिये भी कि इस ठहरे हुये पानी में जीवाणुओं के पैदा होने से लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। मच्छरों के काटने से बचने के लिये लोग ऐसे कपड़े पहन सकते हैं जो पूरी तरह से उनकी त्वचा को ढ़ंक कर रखें। कीटरोधियों (जैसे कीटरोधी स्प्रे) का उपयोग किया जा सकता है, जो मच्छरों को दूर रखेंगे।

यदि किसी को डेंगू बुख़ार हो जाय तो वह आमतौर पर अपनी बीमारी के कम या सीमित होने तक पर्याप्त तरल पीकर ठीक हो सकता है। यदि व्यक्ति की स्थिति अधिक गंभीर है तो, उसे अंतः शिरा द्रव्य (सुई या नलिका का उपयोग करते हुये शिराओं में दिया जाने वाला द्रव्य) या रक्त आधान (किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रक्त देना) की जरूरत हो सकती है।






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