छत्तीसगढ़ : बस्तर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) केंद्रीय कमटी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर क्रांतिकारी मई डे (अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस) को मनाये - प्रवक्ता ,अभय केन्द्रीय कमेटी।

छत्तीसगढ़ : बस्तर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) केंद्रीय कमटी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर क्रांतिकारी मई डे (अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस) को मनाये - प्रवक्ता ,अभय केन्द्रीय कमेटी

फासिवाद भाजपा के नया चार मजदूर कानून, किसान विरोधी कानून और जन विरोधी नीति के खिलाफ पूरे देश भर में राजनीतिक मिलिटेंट मजदूर और किसान आंदोलन को खड़ा करे।

छत्तीसगढ़ ( बस्तर ) ओम प्रकाश सिंह ।  भारत की कम्युनिस्ट पार्टी भारत दो और विव के सारे दो के सर्वहारा वर्ग, मेहनतकश जनता को मई डे (मजदूर दिवस) के अवसर पर अपना हृदय पूर्वक अभिनंदन और क्रांतिकारी सुभकामना देती है। हम मई डे इस एतिहासिक समय पर मना रहे है जब पूंजीवाद अपने सबसे बुरा संकट से गुजर रहा है।

 

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( माओवादी ) केन्द्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि साम्राज्यवाद उत्पीड़ित दो और उसके मेहनतकश जनता के ऊपर भीषण दमन और शोषण कर रहा है। साम्रज्यवादी युद्ध तीव्रता का रूप लेते हुए परमाणु युद्ध की तरफ बढ़ रहा है। विव के सारे सर्वहरा, पूंजीवाद के नीजि लाभ के लिए एक साधन में तब्दील हो चुका है। इसके तहत उसके सारे अस्थित्व के तत्व को घटाकर उसे मानवीय जिंदगी से वंचित कर समाज में सिर्फ पूंजी के लिए जीने का मौका दिया गया है। इस थोपी हुई हकिखत के खिलाफ सर्वहारा वर्ग विद्रोह के राह पर चल पड़ा है। भारत जैसे अर्धसामंती- अर्धउपनिवा दो में पूंजी कई रूप में अस्थित्व करती है, और इसके साथ-साथ सर्वहरा वर्ग भी कई रूपों में अस्थित्व करती है। आज भी भारत दो में श्रम पूरी तरह से आजाद नही है। जैसे हम पूंजीवाद दो में देखते है। भारत दो में आज भी अवैतनिक घरेलू श्रम, देहरी श्रम और गुलामी श्रम, भारत दो में दलाल पूंजीवाद और भूस्वामी के मुनाफे का एक प्रमुख साधन है। भारत दो में जब मोदी सत्ता में आया तब से अर्थिक और सामाजिक असमानता कॉफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। दो के 100 अरबपति, 54 लाख करोड़ संपति को पूंजी अपने कब्जे में किए है। यह सारा पैसा दो को 18 महीने के लिए चला सकता है। सम्पत्ति और सधानों के ऊपर शासक वर्ग का केंद्रीकरण के चलते भारत की आर्थिक व्यवस्था का और मजदूर वर्ग के ऊपर कॉफी दमन हो रहा है।




कृषि परिस्थिति : केंद्र में भारतीय जनता पार्टी और राज्यों के शासक वर्ग पार्टीयो ने छोटे, मध्यम और धनिक किसानो के लाभ के लिए कोई परिस्थिति नही खड़ा की है। केंद्र की नई बजट में व्याज के लिए 20 लाख करोड़ रूपये का प्रावधान है। यह किसानों के खर्ज माफी, एमएसपी और निवा की दामो में कमी की मांगो के ऊपर एक मजाक है। जो भी लाभ छोटे, मध्यम और धनिक किसानों को होता है, उसे भूस्वामी और साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा नीछोड दिया जाता है और किसानों के ऊपर अत्याचार करता है। अंत में वह लाभ उत्पादन को विकसित करने में पूरा विफल होता है। पिछले जनगणना के मुताबिक भूमी हीन किसान की आबादी 14 करोड़ थी. और चलती हुई परिस्थिति को देखते हुए यह साफ है की उनकी संख्या वृद्धि हुई है। करीब 83 प्रतित ग्रामीण परिवार के पास 30 प्रतित से भी कम जमीन है, यह साफ तौर से दरशाता है कि भूमि की केंद्रीकरण आज के नया भूस्वामी और कारपोरेट वर्ग के हाथों में है।
रोजगार कि परिस्थिति और सर्वहारा वर्ग पर हमला : 90 प्रतित भारत दो के मजदूर असंगठित क्षेत्र में है। 2022 - 23 की वित्तिय साल में करीब 10,655 छोटे और मध्यम कारखाने बंद हो चुके है, यह पिछले 4 सालों में सबसे अधिक है। असंगठित क्षेत्र भारत दो के अर्थ व्यवस्था में 30 प्रतित की भागीदारी रखता है, और 40 प्रतित मजदूर वर्ग नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना महाम्मारी से बेहाल हो चुके है। संगठित क्षेत्र में सरकारी नौकरी की भागीदारी दिन ब दिन कम होते जा रही है। 2014 से 22 तक करीब 22 करोड़ से अधिक रोजगार के लिए अवेदन हुई थी, पर मोदी सरकार ने मात्र 7 लाख को ही सरकारी नौकरी दे पाई। इसके बावजूद 44 प्रतित सरकारी नौकरी अस्थायी रूप से और ठेकेदारी आधार पर सरकार नियुक्त
कर रहा है। इसी समय में करोड़ो मजदूर और कर्मचारी मोदी के साम्राज्यवादी और दलाल नौकर ही पूंजीपति के परस्त नीतियों के चलते अपनी नौकरी को खो दिया है। भारत की अर्थ व्यवस्था की असंगठितिकरण के चलते मजदूर और किसान वर्ग के ऊपर लूट और गोषण में काफी तेजी हुई है। वेतन की घिरावट में (1980 में 30 प्रतित से 2009 में 9.5 प्रतित तक घिर आया) और मुनाफे की विद्धि में (1980 से 2009 तक 15 प्रतित से 55 प्रतित बढ़ गया) का मुख्य कारण मजदूर वर्ग का ठेकेदारीकरण है। ठेकेदार मजदूर के संख्या संगठित उत्पादन क्षेत्र में 12.26 प्रतित 1990-91 से 42.27 प्रतित 2013-14 तक विद्धि हुई है। श्रम भगीदारी दर (वह आबादी जो काम करने के उम्र में है। जो काम कर रहा है। या काम ढूँढ रहा है ) में घिरावट 42.9 प्रतित से 39.8 प्रतित घिरावट पिछले सालों में हुई है। मजदूर और मेहनतका जनता की क्रय क्ति पर हमला हुआ है। 2016-17 और 2021-22 के बीच में सिमेंट खारकानों में रोजगार की 62 प्रतित गिरावट हुई है, स्टील खारखानों में रोजगार की घिरावट 10 प्रतित हुई, खदान विभाग में 28 प्रतित रोजगार की घिरावट हुई है। 2021 एनसीआरबी रिपोर्ट के तहत 80 हजार से अधिक दिहाड़ी मजदूर ने आत्मा हत्या कि है। ये कोई आत्मा हत्या नही बल्किंसक वर्ग द्वारा किये गये हत्या है।

सरकारी विभागों के प्राईवेटीकरण : 2014 में बीजेपी जब सत्ता रूढ़ हुई है, तब से कई नीतिया सरकारी क्षेत्र को प्राईवेटीकरण करने के लिए लागू किया है। कोल इंडिया लिमिटेड को अडानी, अम्बानी के हाथों में भाजपा सरकार सौंपने की आये दिन प्रयास कर रही है। इसके लिए कोल माईन्स (स्पोल) प्रोविजन एक्ट 2015 को बनाया हैं। इसके जरिए प्राईवेट व्यापारी कोयला के उत्पादन और इसके बेचने में मन-मानी कर सकता है। तेंलगाणा में सिंगरेनी कोल खदान को अडानी, आम्बनी को बेचने में मोदी सरकार भरपूर को कर रही है। नोनल मोनेटाईजान प्रोग्राम के तहत भाजपा 400 रैल्वे स्टोन को, 150 जनता के रैल को और रैल लाईन को प्राईवेट कम्पनीयों को में बेचने की तैयारी में है। कई सारे सरकारी बैंक को, भीमा विभाग, दूर संचार विभाग और कई सारे विभागों को प्राईवेटीकरण करने की मोदी सरकार समर्पित है। प्राकृतिक संसाधानों के कारपोरेटीकरण जतना के ऊपर फासीवाद हमलो के तहत आगे बढ़ रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संघर्ष: फ्रांस के मजदूर आंदोलन साफ तौर पर फ्रांस के बुर्जूआ लोकतंत्र और आर्थिक व्यवस्था के दरशाता है। फ्रान्स के राष्ट्रपति मैक्रोन अपने सन लोकतंत्र संसद व्यवस्था को नजर अंदाज करते हुए और मजदूरो के ऊपर भीषण दमन चलाकर सत्ता में है। 23 मार्च के फ्रांस के मजदूर आंदोलन जो नया पोन कानून और मजदूर वर्ग के कई सारे समस्या के खिलाफ प्रदर्शन हुआ था वह एक उग्र रूप लिया था, जिसको देखकर शासक वर्ग ने आंदोलन को भगावत का नाम दिया था। आज वह आंदोलन पूंजीवाद के खिलाफ विशाल ताकत के रूप में तब्दील हुआ है। परन्तु सुधारवादी ताकते फ्रांस के अंदर कंधा - से कंधा मिलाकर बुर्जूआ व्यवस्था को बचाने के लिए चल रही है। यह सारे सुधारवादी पार्टीयॉ फ्रांस में मजदूर आंदोलन को खत्म करने के लिए भरपूर प्रयास कर रही है। असली कम्युनिस्ट और क्रांतिकारी ताकतो को मजदूर आंदोलन को आगे ले जाते हुए और फ्रांस में समाजवाद की स्थापना करने के लिए राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष को करनाहोगा। फ्रांस के मजदूर वर्ग को पूरे फ्रांस में सामान्य हड़ताल करके पूंजीवाद कि रीड की हड्डी को थोड़ना होगा। ब्रिटन में भी 2022 मई से मजदूर आंदोलन तेजी से उबर रही है, जो राजनीतिक संकट को जन्म कर रहा है। अमेरिका में भी हम नर्स आंदोलन और कई सारे मजदूर आंदोलन को देख रहे है। यह सब दरशाता है कि वर्ग अंतरविरोध तीव्र हो रहा है, और विव पूंजीवाद व्यवस्था गंभीर संकट में है।
भारत दो में ट्रेड यूनियन मजदूर संघर्ष को लेकर सर्वहरा दृष्टिकोण ना रखते हुए बल्कि मजूदर संघर्ष को सत्ता के अनुकूल बनाकर रखा है। पूंजी और सरकारी ताकत के एकता के सामने मजदूर वर्ग छोटे-छोटे हिस्सों में बटा हुआ है। ट्रेड यूनियन मजदूर संघर्ष को राजनीतिक दिए में एक कदम आगे नही ले जा रहा है। वर्तमन में मजदूर आंदोलन स्वभाविक चेतना को दर्शा रही है, जो ट्रेड यूनियन के पो किये गाए स्भाविक मांगों पर निर्भर है। हड़ताल एक औपचारिक कार्य बन चुका है, और मजदूर वर्ग की जिन्दगी की परिस्थिति बदलाव करने में भी विफल रहा है। 1991-2022 तक करीब 21 हड़ताल भारत में केंद्रीय ट्रेड यूनियन द्वारा दी गाई थी, परन्तु ये सारे हड़ताल सरकार के उपर प्रभाव डालने में चिफल रहा है। ये सारे हड़तल एक देखावा हड़ताल थी। भारत के मजदूर आंदोलन एतिहास के कठिन वक्त से गुजर रही है, और अपने कमीयों से बहार आने के लिए राजनीतिक दृष्टिकोण रखते हुए किसान और मेहनतका जनता के साथ उसे संयुक्त मोर्चा में तब्दील करना होगा।
भारत दो के साथ-साथ विव के सारे ट्रेड यूनियन आज सोधनवादी और बुर्जूआ ताकतो के पकड़ में है, जो मजदूर वर्ग आंदोलन को अर्थवाद और सुधारवाद के दल-दल में फसा रखा है। ये सारे गैर सर्वहरा सिद्धांत के खिलाफ संघर्ष करने को मजदूर वर्ग का कर्तव्य बनता है। आज मजदूर वर्ग को मिलिटेंट मजूदर आंदोलन को खड़ा करते हुए सत्ता को हतियाना होगा।
कामरेड्स
भारत में मौजूदा उत्पादन संम्बंध घोषण का रूप है, और वह सामाजिक उत्पादन के विकास में बाधा डाल रही है। भारत की उत्पादन व्यवस्था साम्राज्यवाद के अधीन और सामंतवाद का जकड में फसे हुए है. मजदूर वर्ग और जनता के विकास में रूखावट का कारण साम्राज्यवादी पूंजी, दलाल नौकशाही पूंजीवाद और सामंतवाद बन रहा है। भारत के सर्वहारा वर्ग और किसान मेहनतका जनता को अर्धसंमाती - अर्धउपनिवा व्यवस्था को उकाड़ पेक देना है, नवजनवादी क्रांति को सफल बनाना है और समानवाद के तरफ भरना है भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) सारे जन संगठन, किसान, मजदूर, बुद्धिजीवि, महिला, युवाओं, कार्मचारी, लेखकों, दलित राष्ट्रीय संगठनों को चार मजदूर कानून के खिलाफ किसान कानून के खिलाफ, ब्रम्हाणीय हिन्दुत्व फासीवाद के खिलाफ पूरे दो भर में मिलिटेंट राजनीतिक मजदूर और किसान, महिला एकता आंदोलन को खड़ा करने की आह्वान देती है।

Post a Comment

0 Comments